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Thursday 12 February 2015

"नव वर्ष" (संस्मरण)

नव वर्ष "
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( ज०न०वि०-२जपला पलामू झारखंड  )*संस्मरण *
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                आज भी मेरा ख्याल है किअगर आप ज०न०वि०-२जपला पलामू आप जायें तो और वहाँ पुछे तो कि नया साल  कैसे  मनाया जाता है तो जरूर कुछ बच्चे दो  चार कहानी सुना ही देगे।नव वर्ष के बारे में अलग अलग ढंग से आनन्द के लहजे में क्यों कि वहाँ पर हर नव वर्ष केपहली जनवरी को बनभोज का आयोजन होता है।जो अपने स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान की तरफ रवाना होते हहै और मौज मस्ती के साथ प्रकृति के गोद में किलकारीयँ छोड़ते हैं।
                सन् २०११-१२मे मैं ज०न०वि०जपला पलामू-२मे टी०जी०टी०हिन्दी के पद पर कार्यरत रहा।उस समय एक जनवरी २०१२ को नव वर्ष मनाने की तैयारी बहुत धुम धाम से चल रही थी तैयारी करते करते कब एक जनवरी आ गया पता ही नहीं चला,जिसके लिए इतनी तैयारी चल रही थी बस वही हुआ जो पहले से प्लान चल रहा था।
                 वन भोज के लिये सूबह में तैयारी शुरू हो गई जिसमें विद्यालय के सभी कर्मचारी अपने- अपने कार्य में लग गये जैसे कोई घर का उत्सव हो और उसको लगन से करने लगे जब कि दो बस एक स्कूल की बुलेरो अपने समय का ध्यान रखते हुए सुबह-सुबह में हाजीर है। प्लान यही बनाया गया था कि विद्यालय से लगभग १५ किलोमीटर दूर लंगरकोट पहाड़ी (कामेश्वर धाम) पर जाने की तैयारी हो गई।वहीं पर सब कुछ खाने-पिने से लेकर गाना बजाना के समान तक बस पर रख दिया गया खाने पर विशेष ध्यान रखा गया मांसाहारी तथा शाकाहारी दोनों का प्रबन्ध रखा गया।जिसमें शाकाहारी में पनीर की व्यवस्था थी सभी कर्मचारी मिलकर १३५थे।
                  सभी विद्यालय परिवार अपने खानपान साजबाज के साथ कामेश्वर धाम की तरफ दो बस एवं एक बुलेरो रवाना हुई।खुशी के मारे सभी बच्चे झुम रहे थे मानो वैसे जैसे नया जीवन रूपी नया साल करीब आरहा है।वो बच्चों की गाड़ी,किलकारी ,सरारत आपस में तकरार सब के सब में एक नया उमंग दिखाई दे रहा था।जस जस धाम के तरफ गाड़ी आगे बढ रही थी तस तस बच्चों के उमंग को देखकर मौसम भी काफ़ी खुशमिजाज हो गया जो हल्की हल्की बारिश तथा फुहार लिये हुए था मानो जैसे सावन की झड़ी आ गई।इन बच्चों की खुशीया देखकर बादल भी अपने आप को नहीं रोक पाया,वो भी अपना खुशी भरा आशु छलकाने लगा इस बारिश के बुन्द रूपी आशु लोगों के खुशी रूपी आँसुओं से मिल कर २०१२के प्रवेश को अतिसुन्दर बनाया।
               तबतक गाड़ी धाम पर पहुँच चुकी थी लोग सामान उतार रहें थे अपनी अपनी जिम्मेदारी सम्भालते हुए सब अपने कार्य में जुट गये कुछ बच्चे जो शेष थे वे इधर उधर पहाड़ी पर मोती की तरह बिखर गये और सावन रूपी फुहार का आनंद उठाने लगे कभी रिमझिम पानी बरसना कभी खुल जाना इसतरह बारिश से भिगे मानो वैसे प्रतित हो रहे थे जैसे यह नया साल आते ही बच्चों के साथ होली मना रहा हो।
               तभी इधर बनभोज बनने लगा और उधर बच्चे अन्य कर्मचारी कामेश्वर धाम मन्दिर पर पहुँच कर अपना कार्यक्रम शुरू कर रहे थे याद आ रहा है एक तरफ पनीर,दूसरी तरफ मिट तथा तीसरी तरफ चावल तिनो नये साल के उमंग में फदक रहे थे।ये भी अपने तरीके से नया साल मना रहे थे,साथ ही पहाड़ पर रहने वाले जीव जंतुओं को भी यह पता लग गया था कि आज नया साल है,वे भी अपने बनभोज में अपने स्थान को छोड़कर कहीं निरीह जगह पर चले गये हों ।पहाड़ी के उपर बड़े बड़े शिलाखंड लोगों की खुशियों में लिप्त हो गए थे आसपास का वातावरण भी (बारिश की वजह से) अपने तरीके से मौन धारण कर इस नये साल का स्वागत किया।और पेड़ पौधे का हिलना डोलना ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे हम सभी लोगो के संगीत कार्यक्रम मे शामिल होने  को कह रहे हैं।शामिल नहीं करने पर वह अपनी मन्द मन्द मुस्कान नहीं छोड़ते और जहां है वही से  नव वर्ष का आनंद ले रहे थे।
              याद आता है कि जब सभी बच्चे रिमझिम बारिश में अपना कार्यक्रम कर रहे थे तो फिर बारी आई शिक्षकेत्तर कर्मचारी की ये सब भी अपना -अपना एक-एक कार्यक्रम देगें,सभी लोग दो-चार  शब्द बोल कर नव वर्ष पर बच्चों को संबोधित किये जिसमें सबसे मजेदार की बात यह है कि जब मेरी बारी आइ तो  एक शायरी बोला था -
         ऐ मेरे दिल की तमन्ना,
                      मुझे कहाँ तक ले जाओगी।
         मेरी तो मंजिल ही मौत है,
                       क्या उससे भी आगे ले जाओगी।।
दुसरी मजेदार बात यह थी कि उस समय बच्चों के खुशियों को देखकर प्राचार्य स्वयं(एस० सी०झा)बोल पड़े कि हमारे और हिन्दी सर के  बीच हँसीं  प्रतियोगिता होगी मैं पड़ा चक्कर में कि आखिर कैसी प्रतियोगिता है,फिर क्या बस यू ही शुरू हो गया हम दो  लोगो कि प्रतियोगिता। आपस में हम दो लोग हँसने लगे जोर जोर से हसने लगे ।लेकिन हमारे प्राचार्य महोदय अन्ततः जित गये क्योंकि उनके जैसा नहीं हस पाये।बहुत आनंद आया।सभी बच्चे साथ में इसी तरीके से कार्यक्रम किये।फिर साथ में मिलकर एक साथ भोजन करने के उपरांत फिर एक बार कार्यक्रम शुरू हुआ प्रकृति के गोद में इस कार्यक्रम के आनन्द को देखकर यह पता चलता था किसी भी परिस्थिति में अपने मुस्कान खुशियाँ को नहीं छोड़ना चाहिए यहाँ तक कि पर्वत के उपर शिलाखंडों जगह -जगह सफेद मानो वैसा प्रतीत  हो रहा था जैसे हम सभी लोगो के कार्यक्रम को देखकर चहल पहल को। देखकर हँस रहा हो।अर्थात वे सफेद -सफेद टुकड़े पर्वत के दाँत की तरह शोभायमान थे।इस प्रकार नव वर्ष २०१२ ढेर सारी खुशियाँ लेकर आया।
                यह उमंग यह खुशी,यह मिल जुल कर हसना ,गाना,उछलना,कुदना,एक दूसरे के साथ चलकर एवं खड़ा हो कर फोटो खिचवाना,एक साथ नाश्ता भोजन करना मानो यह संदेश दे रहे है कि इस नये साल के लिये जो पिछले साल में गिला शिकवा हो उसे भूल कर आपस में परोपकार, सद्भाव ,सत्कर्म एकता से रहने के लिये कह रहा हो।
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            रमेश कुमार सिंह ♌
                 १०

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